कालेज के दिनों में लिखी गई मेरी सर्वप्रथम हास्य कविता. सही कहा है किसी ने की रुलाना बहुत आसान हैं किन्तु किसी को हँसाना उतना ही कठिन.. मेरा भी इस राह में ये पहला प्रयास था....
मेरे एक मित्र के यहाँ शादी पड़ी,
मुझे लगा चलो एक दावत तो मिली,
सोचा,लड़की की हुई तो पाचास-सौ में काम चल जायेगा,
लड़के की हुई तो ये भी वापस मिल जायेगा.
अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक ने मेरे विचारों को तोडा,
में झुंझला कर बोला- साहब घर पर नहीं हैं
बाहर से आवाज आई- दोस्तों से ही झूठ बोलते हो,
दरवाज़ा खोलने से डरते हो,
अरे यार में वही तुम्हारा दोस्त हूँ
जिसके यहाँ शादी पड़ी हैं
पर मेरे सामने एक समस्या खड़ी हैं,
इसका निवारण तो मैं तुमसे ही करवाऊंगा,
दोस्तों के पास न आऊं तो क्या दुश्मनों के पास जाऊँगा,
मैंने मन ही मन सोचा- आज तो बुरे फसें हैं,
ये अपनी समस्या का निवारण मुझसे ही करवाएगा,
लेन-देन का मामला हुआ तो चार-पांच हज़ार ले कर ही जायेगा,
तभी बाहर से फिर आवाज़ आई- अरे दरवाजा तो खोल,
कुछ तो बोल,
खडें-खडें मेरा दम निकला जा रहा हैं,
मैं बोला- पाजामा तो मिल गया लेकिन,
नाडा नहीं मिल रहा हैं,
जैसे तैसे मैंने दरवाज़ा खोला,
वो अंदर आ कर मुझसे लिपट कर बोला,
अरे यार! तू ही तो मेरा सच्चा दोस्त हैं,
बुरे वक्त में काम आता हैं,
तू ही तो गरीबों का दाता हैं,
मैने कहा- ठीक हैं ठीक हैं लिपट मत, ज़रा दूर हटके बात कर,
वरना पाजामा खुल जायेगा,
और जो नहीं होना चाहिए, वो हो जायेगा,
मैंने पाजामा को कस के पकड़ते हुए पूछा-
ऐसी कौन सी समस्या हैं जो तू नहीं सुलझा पायेगा,
और अपनी समस्या मुझसे सुलझवायेगा,
अगर समस्या है हलवाई की तो घबरा मत,
मेरे पडोसी का साला, बनाता है अच्छा खाना,
ऐसा खाना बनाएगा की बाराती उंगलियाँ चाट्तें रह जायेंगें
चम्मच कटोरी प्लेट सब छोड कर भाग जायेंगें,
चल ये समस्या तो तेरी सुलझ गयी,
और खाने की भी बचत हो गयी,
इतना सुनते ही मेरे दोस्त ने अपना मुंह खोला,
मैं बीच मे ही बोला-
की अगर समस्या हैं आभूषणों की,
तो इसमे कौन सी बड़ी बात हैं
किशोरीलाल ज्वेलर्स की दुकान अपने साथ हैं,
उसकी दुकान पर शादी का कार्ड लेके जायेंगें
और महगें से महंगे आभूषण तेरे क्रेडिट कार्ड पर ले आयेंगे,
इतना कहते ही मेरे मुहँ पर अपना हाथ रखते हुए वो बोला,
अरे यार! तू अपनी ही कहे जा रहा हैं
मेरे दिल का हाल तो जान ले,
अभी तो समस्या बताई ही नहीं वो तो सुनले,
मैनें उसका हाथ हटाते हुए पूछा- अबे गधे!
पहले क्यों नहीं बोल पाया,
फालतू में इतना बक बक करवाया,
अच्छा पहले ये बताओं की शादी किस की-किसके साथ हैं,
वो बोला- यही तो असली बात हैं,
जो तुम्हारी बीवी के हाथ हैं,
मैनें कहा- मेरी बीवी का इसमे क्या हाथ हैं,
वो मुस्कुराकर बोला- अरे यार शादी तो उसी के साथ हैं,
मेरा तो सिर चकराया,
और मन ही मन फ़रमाया
हे भगवान ये क्या हो गया
गरीबों का दाता आज खुद ही फँस गया,
अचानक खुल गयी मेरी आँखें
देखा सुबह हो चुकी थी और मैं ज़मीन चाट रहा था,
कभी अपने आपको तो कभी पाजामे के नाडे को निहार रहा था.
shandaar..kavita
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