आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Friday, March 22, 2024

दोहे दर्शन - होली विशेष

होलिका देखो जल मरी, हुई हिरण्यकशयप की हार

ऐसा हर इक साल हो, जब नरसिंह ले अवतार


है बासंती मौसम, दिलो में न रखो आग
सापँ नेवले देखिये, मिलकर गावे फाग

मन बसंती तन बसंती, बसंत चारो ओर
रंग उडे गुलाल उडे, फगवा का है शोर

फाल्गुन का महीना, रंगो का है जाल
सजनी साजन के मले, रंग अबीर गुलाल

आस्था और विश्वास पे, लगी समय की घात
पहले जैसी न रही अब, होली की वो बात

फागुन की बयार में, सब कुछ भया अंतरंगी
मृंदंग बन गया है मन, और तन हुआ सारंगी

श्याम वर्ण पर हे! सखी, चढ़ो न दूजो रंग
गोपियों में घिरे श्याम, मुसकाए मंद मंद

देख गोपियो की दशा, उद्धव युक्ति बताए
पहले प्रेम रंग डार दे, फिर हर रंग चढि जाए

धरती पर रंग पसरे सब, हुआ बावरा मन
इक दूजे को जाने बिन, गले लग रहे तन

तेरी मीठी बातों से, तन मन भया गुलाल
बासंती हो जाए धरा, जब तू खोले बाल

उनकी होली कैसे मने, जो सरहद के लाल
दोनो हाथों रख अबीर, नभ में दो उछाल

ये कैसा संयोग है, इस होली के नाम
अवध खेले श्याम संग, द्वारका में श्री राम

राँझां बन के घूम रहे, मिली न उनको हीर
देखे इस होली में इनकी, पलट जाए तकदीर

अब की होली हे! ईश्वर, भर दो इनके थाल
पकवान के ले मजे, हर भूखा इस साल

वो किनारे बैठ कर, करती रही मलाल
बिन साजन होली नहीं, सूखा रह गया गाल

कान्हा बन सब घूम रहे, मुहँ पे रंग लगाए
असमंजस में गोपियाँ, कान्हा उन्हे न बुझाए

हुरियारे नाचत फिरत, पी के ठंडई भंग
जैसे शिव बारात हो, हर कोई मस्त मलंग

प्रकृति हमसे कह रही, खूब खेलो फाग
फागुन मौसम बीतते ही, बरसाऊगीं आग

देश का पैसा खा गए, कर गए बंटाधार 
काश! जेल में बीते इनका, होली का त्यौहार

उनको रंग लगाइऐ,जो टूटे हर बार
हौंसलों के दम पे जो, कर ले मुश्किल पार

फैला दो रंग गगन में, पर मत जाना भूल
पिसना होगा जग में वैसे, जैसे टेसू के फूल

बौराय सब नारी नर, फगुनाय सब संत
भंग घुली हवाओं में,आया ऋतुराज बसंत

अब की होली अवध की, अयोध्या के धाम
सिय के संग रंग खेलत है, वैदेही के राम

धू-धू कर के जल रही,भभक भभक कर आग
वो समझते रहे होलिका,पर बेटी जली थी आज

मूल मंत्र

 

धूप में या चाँदनी में, लाभ में या हानि में

कर्मठी रहो सदा, मधुर अपनी वाणी में


पाप पुण्य के फेर में, सत्य असत्य के ढेर में

निर्जीव तुम न हो कभी, देर या सवेर में


प्रात में या रात में, संग में न साथ में

निडर बन डटे रहो, घात या प्रतिघात में


आस में या निराश में, जीवन के हर इक श्वास मे

सिह सा दहाड दो, धरा से आकाश में


जीत में या हार में, जन्म मरन के सार मे

विचलित होना है नहीं, किसी भी मझधार में


जो हुआ अच्छा हुआ, ये ना कोई मात है

दिन निखर आएंगे, कट जाएगी जब रात है


जिस कर्मक्षेत्र में है तू खड़ा, अवसर ही अवसर है बड़ा 

बस मार्ग में अडे रहो, संकटो से लड़ते रहो

जीवन का यही मूल मंत्र है, 

ये तो बस आदि है, इसका न कोई अंत है