आदमी
प्यार को भूल चुका आज आदमी,
भूल चुका सारे व्यवहार आदमी,
नफ़रत की अन्धी ‘’अन्जान’’ दौड़ में देखो,
हो गया हैं शामिल आज आदमी,
भूल गया रिश्तों को आज आदमी,
भूल गया सम्बन्धों को आज आदमी,
अपने ही रिश्तों पर देखो रखता बुरी नज़र
कितना बदल गया हैं आज आदमी,
घमण्ड से भर गया हैं आज आदमी,
पाखण्ड का पकड़ा साथ देखो आज आदमी,
घमण्ड और पाखण्ड के नशे में हैं चूर,
भूल गया जीवन का ही अर्थ आदमी,
धर्म के नाम पर चिल्ला रहा आज आदमी,
आपस में देव्ष रख रहा आज आदमी,
मरने से कभी देखो डरता नहीं मगर,
मुफ्त में अपनी जान गवां रहा आदमी,
वक्त है संभल जा तू आज आदमी,
जीवन के मूल्यों को पहचान आदमी,
जो कुछ हुआ अभी तलक वो भूल जा सभी,
अपने को पहले एक बेहतर इंसा बना आदमी.
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