आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Saturday, March 22, 2025

हम फिदाए लखनऊ!

 हैं और भी दुनिया में शहर 

पर तेरी अलग बिसात ए! लखनऊ 

दिल दिमाग पर कुछ इस कदर

छा सा गया है शहरे ऐ लखनऊ !


गलियां हो नक्कखास की

या फिर अमीनाबाद की

हर इक तंग गली में जनाब 

दिख जाएगा तुझे ऐ लखनऊ !


बजारों की रौनक हो,

या वीरान पड़ी इमारतें

सूरते हाल कुछ भी हो

मुस्कुराता मिलेगा तुझे ऐ लखनऊ !


टुंडे का हो कबाब या

प्रकाश की हो कुल्फी 

जुबाँ पे चढ़ जाएगा तेरे

हर जायका ऐ लखनऊ !


रेशमी साडी हो या फिर 

चिकनकारी हो कुरतों की

इक बार आजमा ली तो

बस जाएगा तन पे ऐ लखनऊ !


हुसैनाबाद की जुमा मस्जिद हो

या हनुमान सेतु का मन्दिर 

सिर कहीं भी झुकाओ अपना

दिख जाएगा तुझमें खुदा ऐ लखनऊ !


हिन्दु भी हैं मुस्लिम भी हैं

धर्म और भी हैं बसते

गंगा-जमुनी तहज़ीब है यहाँ

कौमी एकां की मिसाल ऐ लखनऊ !


मीर का शहर कहो इसे

या बिस्मिल का कहो नगर 

कूचे कूचे मे बसा था हुनर

बदस्तूर आज भी छिपा ऐ लखनऊ! 


अब क्या जवाब दूँ मैं,

तेरे इस सवाल का

है कौन सा शहर लाजवाब 

जुबाँ पर एक ही नाम ऐ लखनऊ!


इस शहर की आबो-हवा के, 

हम पर इतने सायें हैं, 

मुफ़लिसी में भी यहाँ हमने

खूब जश्न मनाये हैं, 

अदब व तहजीब के संग, 

दौड़ेगा जब तलक रगो में खूँ 

कोई भी तेरी हस्ती मिटा, सकता नहीं ए! लखनऊ








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