आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, March 18, 2025

गजल

वो खुद ही अपने सवालों में उलझने लगे,

बातों-बातों में देखिये कैसे वो मुकरने लगे।


मांग रहा था भूखा कोई दो जो रोटियाँ,

उससे यारो आप चाँद की बात करने लगे।


जल रही थी झोपड़ी, जब किसी की शाम से,

आप उससे महफ़िलो में जाम की बात करने लगे।


हाथो में हैं छाले उसके,और पैरों में हैं पत्थर पडे

उससे यारो कैसे आप आराम की बात करने लगे।


सांस उखड़ी हुई है उसकी, महँगाई की मार से,

न जाने क्यों उससे आप जश्न की बात करने लगे।


जो गिरा था राह में देखो, हो के बेबस लहू-लुहान,

उसे छोड़ आप मस्जिद-मन्दिर की बात करने लगे।


जिसके घर उजड़े हुए है, उसी से सबक न लिया,

सिर पर रख आप फिर इल्ज़ाम की बात करने लगे।


पैरों तले ज़मीन तक, नहीं बची हुई है जिसके,

उससे आप ऊँचाइयों के मक़ाम की बात करने लगे।


जिसके हिस्से की रौशनी, छीन ली गई हो दोस्तो,

उसे पास बैठा कर आफ़ताब की बात करने लगे।


बच्चे किताबों को तरसते, रहते हैं अब दिन-रात,

आप उनसे तालीम-ए-ख़्वाब की बात करने लगे।


सड़कों पे सो गए हैं , थक हार कर कई बेघर लोग,

उनसे आप यारों ऐशो-आराम की बात करने लगे।


आँखों में आँसू थे उनके, और लब थे मगर ख़ामोश,

आप उनसे फिर भी इन्क़लाब की बात करने लगे।


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