नारी अपने आप में, एक अभिव्यक्ति है,
जैसी भी है तू ,अपने आप में एक शक्ति है।
तेरी ममता में बहारों की दिखती है कोमल छाया,
तेरी दृढ़ता ने हर युग में, एक नया पथ दिखाया।
संघर्षों में भी तूने खुद को, क्या खूब तराशा है,
अश्रुओं से झरते मोती, हर दुख में इक आशा है।
तेरी गोद में ही सजता है , सृष्टि का हर इक रंग,
तू न हो तो ये जगत भी, हो जाता है बेढंग।
तू कभी है दुर्गा तो, कभी मीरा की है मूरत,
तू कभी करुणा तो, कभी क्रांति की है सूरत।
तेरे विचारों में छिपी है ,सृजन की अग्नि भी,
तेरे सपनों में है दिखती,जिद्द की इक उमंग भी।
तू चाहे तो पर्वत भी, तेरे आगे झुक जाए,
राहों में तेरी दुनिया का, हर इक पल रुक जाए।
तू है सरस्वती तू ही है, विद्या का अथाह सागर,
तेरी बुद्धि से ही बने, देखो रिश्तों मे एक आदर
तू लक्ष्मी है तुझसे ही है, समृद्धि की पहचान,
तेरी कृपा से महके आंगन, तू है कृपानिधान
तू प्रेम की है मूरत, तुझ में है शक्ति अपार,
तेरे बिना अधूरा है, जग का हर एक घर-परिवार।
नमन तुझे है मेरा हर क्षण, तू हर रूप में है सुंदर,
तू न हो तो वीरान हो जाए,ये धरती और समंदर।
तू केवल देह नहीं, तू आत्मा की है अल्पना,
तेरे बिना अधूरी है, इस सृष्टि की कल्पना।
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