वो अंदर से टूटा है, पर हारा नहीं है,
टीस है अपनों की, वक़्त का मारा नहीं है।
सह चुका है हर दर्द, पर ज़ख़्म अब भी हरा है,
मगर ज़िन्दगी से उसने किया किनारा नहीं है।
छोड गए सब अपने, हर इक राह में मुझको
दिल ने किसी से शिकवा किया दोबारा नहीं है।
आँधियों ने चाहा था हर दीप बुझाने को,
पर हौसले को जलना अभी गंवारा नहीं है।
गिरा, सम्भला, चला, फिर से अपनी डगर,
वो टूटा ज़रूर है, पर बेसहारा नहीं है।
ज़ख़्म दिल के सी लिए, अश्को को पी गया,
लिखता रहा दर्द, मगर वो बेचारा नहीं है।
जो छले गए वक़्त की साज़िशों से दोस्तों
वो भी कहते हैं देखा "ऐसा सितारा नहीं है।"
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