आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Saturday, March 22, 2025

गज़ल

वो अंदर से टूटा है, पर हारा नहीं है,

टीस है अपनों की, वक़्त का मारा नहीं है।

सह चुका है हर दर्द, पर ज़ख़्म अब भी हरा है,

मगर ज़िन्दगी से उसने किया किनारा नहीं है।

छोड गए सब अपने, हर इक राह में मुझको

दिल ने किसी से शिकवा किया दोबारा नहीं है।

आँधियों ने चाहा था हर दीप बुझाने को,

पर हौसले को जलना अभी गंवारा नहीं है।

गिरा, सम्भला, चला, फिर से अपनी डगर,

वो टूटा ज़रूर है, पर बेसहारा नहीं है।

ज़ख़्म दिल के सी लिए, अश्को को पी गया,

लिखता रहा दर्द, मगर वो बेचारा नहीं है।

जो छले गए वक़्त की साज़िशों से दोस्तों

वो भी कहते हैं देखा "ऐसा सितारा नहीं है।"


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