रणभूमि में गूंजे गर्जन,
शेरों सा हुँकार उठे।
वीरों के साहस से देखो,
पर्वत भी थर-थर काँप उठे।।
खड्ग उठा जब हाथों में,
बिजली बन कर चमक उठे।
शत्रु दल के मस्तक पर,
मृत्यु बन कर वो गिर पड़े।।
माँ के लाल लहू से अपने,
माटी को चंदन करते हैं।
सर कट जाए लेकिन फिर भी,
पीछे कदम न धरते हैं।।
धधक उठे जब रण का अंगारा,
आंधी बन कर वो चलते हैं।
वीर शिवा, प्रताप की धरती,
रक्त से जयघोष वो भरते हैं।।
सर कट जाए धड़ चलता है,
जय जय कार सुनाई देती है।
रण में बस विजय लिखी हो,
उन्हे मृत्यु न दिखाई देती है।।
धरती को सींचा लहू से,
फिर तिरंगा लहराया है।
माँ भारती के हर बेटे ने,
बलिदान का दीप जलाया है।।
आएगें सौ संकट घनघोर,
हम नभ में गर्जन कर देंगे।
दुश्मन की काली ताकत को,
हम उसके सीने में भर देंगे।
जय भारत! जय वीरों की!
माँ का हम मान बढ़ाएंगे।
जब तक साँसें हैं इस तन में,
हम हर शत्रु मिटाते जाएंगे।।
हमें मिटा पाओगे कैसे,
हम गर्व की एक मिसाल हैं।
हर युग में हम जन्म लेंगे,
हम भारत भूमि के लाल हैं।।
हम हैं वो सूरज, जो रण में,
लहू की किरणें बरसाएंगे।
अपने शौर्य की हुँकार से
हम धरती सजाते जाएंगे