आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Sunday, August 31, 2025

गजल--तेरी राह देखती है

 


मैं भटक सा रहा हूँ बेखबर राहों में,

मिरी मंज़िल तेरे आने की राह देखती है।


चाँदनी से सजी रात यूहीं ख़ामोश सी है,
तेरी यादें मेरी साँसों की पनाह देखती है।

अंधेरे से साये हर कदम साथ चलते हैं,
एक उम्मीद दूर रोशन निगाह देखती है।

दिल के वीराने में तूफ़ानों का है डेरा लगा,
अब मोहब्बत तेरे होने की गवाह देखती है।

तेरे नाम की ये रोशनी जो जलती है दिल में,
ये दीवानगी भी तुझको अब खुदा देखती है।

तेरी खुशबू से महकते हैं सब ख्वाब मेरे,
तेरी धड़कने मेरी रुबाई की सदा देखती है।

तन्हा है तेरे बिना पूरा मेरा ये कारवाँ,
"अंजान" सी कशिश अब तेरी चाह देखती है

गजल- दास्ताने मोहब्बत

 

उनसे क्या मिले कि हम पहचान से गए,

जो भी रुतबा था हम उसकी शान से गए।


इश्क़ का ख़ुमार कुछ इस क़दर चला,

क़िस्तों में कटी ज़िंदगी और हम जान से गए।

ख़्वाबों की रवानी थी कि निगाहों का था नशा,

ज़िक्र आया उनका लब पे, तो हम अरमान से गए।

नादाँ दिल को समझाते रहे दुनिया जहाँ के लिए,

वो जब भी मुस्कुराए तो हम ईमान से गए।

उस सफ़र-ए-इश्क़ में जो रास्ते मिले,

मंज़िल भी मिली न और हम थकान से गए।

‘अंजान’ दास्ताँ है यह मोहब्बत की पुरानी,

जिनसे उम्मीद थी, हम उसी गुमान से गए।

Monday, March 31, 2025

शौर्य की हुँकार

रणभूमि में गूंजे गर्जन,

शेरों सा हुँकार उठे।

वीरों के साहस से देखो,

पर्वत भी थर-थर काँप उठे।।

खड्ग उठा जब हाथों में,

बिजली बन कर चमक उठे।

शत्रु दल के मस्तक पर,

मृत्यु बन कर वो गिर पड़े।।

माँ के लाल लहू से अपने,

माटी को चंदन करते हैं।

सर कट जाए लेकिन फिर भी,

पीछे कदम न धरते हैं।।

धधक उठे जब रण का अंगारा,

आंधी बन कर वो चलते हैं।

वीर शिवा, प्रताप की धरती,

रक्त से जयघोष वो भरते हैं।।

सर कट जाए धड़ चलता है,

जय जय कार सुनाई देती है।

रण में बस विजय लिखी हो,

उन्हे मृत्यु न दिखाई देती है।।

धरती को सींचा लहू से,

फिर तिरंगा लहराया है।

माँ भारती के हर बेटे ने,

बलिदान का दीप जलाया है।।

आएगें सौ संकट घनघोर,

हम नभ में गर्जन कर देंगे।

दुश्मन की काली ताकत को,

हम उसके सीने में भर देंगे।

जय भारत! जय वीरों की!

माँ का हम मान बढ़ाएंगे।

जब तक साँसें हैं इस तन में,

हम हर शत्रु मिटाते जाएंगे।।

हमें मिटा पाओगे कैसे,

हम गर्व की एक मिसाल हैं।

हर युग में हम जन्म लेंगे,

हम भारत भूमि के लाल हैं।।

हम हैं वो सूरज, जो रण में,

लहू की किरणें बरसाएंगे।

अपने शौर्य की हुँकार से

हम धरती सजाते जाएंगे

Saturday, March 22, 2025

हम फिदाए लखनऊ!

 हैं और भी दुनिया में शहर 

पर तेरी अलग बिसात ए! लखनऊ 

दिल दिमाग पर कुछ इस कदर

छा सा गया है शहरे ऐ लखनऊ !


गलियां हो नक्कखास की

या फिर अमीनाबाद की

हर इक तंग गली में जनाब 

दिख जाएगा तुझे ऐ लखनऊ !


बजारों की रौनक हो,

या वीरान पड़ी इमारतें

सूरते हाल कुछ भी हो

मुस्कुराता मिलेगा तुझे ऐ लखनऊ !


टुंडे का हो कबाब या

प्रकाश की हो कुल्फी 

जुबाँ पे चढ़ जाएगा तेरे

हर जायका ऐ लखनऊ !


रेशमी साडी हो या फिर 

चिकनकारी हो कुरतों की

इक बार आजमा ली तो

बस जाएगा तन पे ऐ लखनऊ !


हुसैनाबाद की जुमा मस्जिद हो

या हनुमान सेतु का मन्दिर 

सिर कहीं भी झुकाओ अपना

दिख जाएगा तुझमें खुदा ऐ लखनऊ !


हिन्दु भी हैं मुस्लिम भी हैं

धर्म और भी हैं बसते

गंगा-जमुनी तहज़ीब है यहाँ

कौमी एकां की मिसाल ऐ लखनऊ !


मीर का शहर कहो इसे

या बिस्मिल का कहो नगर 

कूचे कूचे मे बसा था हुनर

बदस्तूर आज भी छिपा ऐ लखनऊ! 


अब क्या जवाब दूँ मैं,

तेरे इस सवाल का

है कौन सा शहर लाजवाब 

जुबाँ पर एक ही नाम ऐ लखनऊ!


इस शहर की आबो-हवा के, 

हम पर इतने सायें हैं, 

मुफ़लिसी में भी यहाँ हमने

खूब जश्न मनाये हैं, 

अदब व तहजीब के संग, 

दौड़ेगा जब तलक रगो में खूँ 

कोई भी तेरी हस्ती मिटा, सकता नहीं ए! लखनऊ








गज़ल

वो अंदर से टूटा है, पर हारा नहीं है,

टीस है अपनों की, वक़्त का मारा नहीं है।

सह चुका है हर दर्द, पर ज़ख़्म अब भी हरा है,

मगर ज़िन्दगी से उसने किया किनारा नहीं है।

छोड गए सब अपने, हर इक राह में मुझको

दिल ने किसी से शिकवा किया दोबारा नहीं है।

आँधियों ने चाहा था हर दीप बुझाने को,

पर हौसले को जलना अभी गंवारा नहीं है।

गिरा, सम्भला, चला, फिर से अपनी डगर,

वो टूटा ज़रूर है, पर बेसहारा नहीं है।

ज़ख़्म दिल के सी लिए, अश्को को पी गया,

लिखता रहा दर्द, मगर वो बेचारा नहीं है।

जो छले गए वक़्त की साज़िशों से दोस्तों

वो भी कहते हैं देखा "ऐसा सितारा नहीं है।"


Tuesday, March 18, 2025

नारी

नारी अपने आप में, एक अभिव्यक्ति है,

जैसी भी है तू ,अपने आप में एक शक्ति है।


तेरी ममता में बहारों की दिखती है कोमल छाया,

तेरी दृढ़ता ने हर युग में, एक नया पथ दिखाया।


संघर्षों में भी तूने खुद को, क्या खूब तराशा है,

अश्रुओं से झरते मोती, हर दुख में इक आशा है।


तेरी गोद में ही सजता है , सृष्टि का हर इक रंग,

तू न हो तो ये जगत भी, हो जाता है बेढंग।


तू कभी है दुर्गा तो, कभी मीरा की है मूरत,

तू कभी करुणा तो, कभी क्रांति की है सूरत।


तेरे विचारों में छिपी है ,सृजन की अग्नि भी,

तेरे सपनों में है दिखती,जिद्द की इक उमंग भी।


तू चाहे तो पर्वत भी, तेरे आगे झुक जाए,

राहों में तेरी दुनिया का, हर इक पल रुक जाए।


तू है सरस्वती तू ही है, विद्या का अथाह सागर,

तेरी बुद्धि से ही बने, देखो रिश्तों मे एक आदर


तू लक्ष्मी है तुझसे ही है, समृद्धि की पहचान,

तेरी कृपा से महके आंगन, तू है कृपानिधान


तू प्रेम की है मूरत, तुझ में है शक्ति अपार,

तेरे बिना अधूरा है, जग का हर एक घर-परिवार।


नमन तुझे है मेरा हर क्षण, तू हर रूप में है सुंदर,

तू न हो तो वीरान हो जाए,ये धरती और समंदर।


तू केवल देह नहीं, तू आत्मा की है अल्पना,

तेरे बिना अधूरी है, इस सृष्टि की कल्पना।


गजल

वो खुद ही अपने सवालों में उलझने लगे,

बातों-बातों में देखिये कैसे वो मुकरने लगे।


मांग रहा था भूखा कोई दो जो रोटियाँ,

उससे यारो आप चाँद की बात करने लगे।


जल रही थी झोपड़ी, जब किसी की शाम से,

आप उससे महफ़िलो में जाम की बात करने लगे।


हाथो में हैं छाले उसके,और पैरों में हैं पत्थर पडे

उससे यारो कैसे आप आराम की बात करने लगे।


सांस उखड़ी हुई है उसकी, महँगाई की मार से,

न जाने क्यों उससे आप जश्न की बात करने लगे।


जो गिरा था राह में देखो, हो के बेबस लहू-लुहान,

उसे छोड़ आप मस्जिद-मन्दिर की बात करने लगे।


जिसके घर उजड़े हुए है, उसी से सबक न लिया,

सिर पर रख आप फिर इल्ज़ाम की बात करने लगे।


पैरों तले ज़मीन तक, नहीं बची हुई है जिसके,

उससे आप ऊँचाइयों के मक़ाम की बात करने लगे।


जिसके हिस्से की रौशनी, छीन ली गई हो दोस्तो,

उसे पास बैठा कर आफ़ताब की बात करने लगे।


बच्चे किताबों को तरसते, रहते हैं अब दिन-रात,

आप उनसे तालीम-ए-ख़्वाब की बात करने लगे।


सड़कों पे सो गए हैं , थक हार कर कई बेघर लोग,

उनसे आप यारों ऐशो-आराम की बात करने लगे।


आँखों में आँसू थे उनके, और लब थे मगर ख़ामोश,

आप उनसे फिर भी इन्क़लाब की बात करने लगे।