उनसे क्या मिले कि हम पहचान से गए,
जो भी रुतबा था हम उसकी शान से गए।
इश्क़ का ख़ुमार कुछ इस क़दर चला,
क़िस्तों में कटी ज़िंदगी और हम जान से गए।
ख़्वाबों की रवानी थी कि निगाहों का था नशा,
ख़्वाबों की रवानी थी कि निगाहों का था नशा,
ज़िक्र आया उनका लब पे, तो हम अरमान से गए।
नादाँ दिल को समझाते रहे दुनिया जहाँ के लिए,
नादाँ दिल को समझाते रहे दुनिया जहाँ के लिए,
वो जब भी मुस्कुराए तो हम ईमान से गए।
उस सफ़र-ए-इश्क़ में जो रास्ते मिले,
उस सफ़र-ए-इश्क़ में जो रास्ते मिले,
मंज़िल भी मिली न और हम थकान से गए।
‘अंजान’ दास्ताँ है यह मोहब्बत की पुरानी,
‘अंजान’ दास्ताँ है यह मोहब्बत की पुरानी,
जिनसे उम्मीद थी, हम उसी गुमान से गए।
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