रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,
कोशिशें करी कई बार कि मिल सकूँ तुमसे,
कदम तुमको दूंढ के वापस लौंट आते है,
रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,
मालूम है हमें कि आप हमसे हैं नाराज़,
कहिये तो आसमां को जमीं पे ले आते हैं,
रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,
जब कभी होता हूँ तन्हा तो बस तुमको सोचता हूँ,
और ये भी सोचता हूँ कि क्या वो भी सोच पाते हैं,
रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,
अपनी तो आदत है दिल साफ़ रखने की,
गर तुम कहो तो ये हुनर तुमको भी सिखाते हैं,
रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,
गलतियां इंसानों से ही होती है ‘अन्जान’,
हमें याद आया तो अब हम पछताते हैं,
रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,
कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं....
सुन्दर प्रस्तुति..बधाई
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