आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, August 31, 2010

ग़ज़ल

इस शहर को न जाने, क्या हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

जो पहचानते थे वो, अंजान हो गये

जो थे समझदार, वो बेईमान हो गये,

आज पैसा ही लोगों का, खुदा हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

अच्छे खासे रिश्ते, बदनाम हो गये,

राम-मोहम्मद-नानक, गुमनाम हो गये,

प्यार लोगों के दिलों से धुआं हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

हम क्या थे पहले दोस्तों, आज क्या हो गये,

नफरत की इस अन्धी दौड़ में,खुद शामिल हो गये,

देख ‘अन्जान’ इस शहर में तू, गुमशुदा हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

2 comments:

  1. सत्य से सराबोर ये गज़ल दिल को छूती है

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  2. are wah.....aap to bada khatarnaak likhte hain......aapki ye gazal mumbai k liye ekdum fit hai....

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