इस शहर को न जाने, क्या हो गया,
हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,
जो पहचानते थे वो, अंजान हो गये
जो थे समझदार, वो बेईमान हो गये,
आज पैसा ही लोगों का, खुदा हो गया,
हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,
अच्छे खासे रिश्ते, बदनाम हो गये,
राम-मोहम्मद-नानक, गुमनाम हो गये,
प्यार लोगों के दिलों से धुआं हो गया,
हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,
हम क्या थे पहले दोस्तों, आज क्या हो गये,
नफरत की इस अन्धी दौड़ में,खुद शामिल हो गये,
देख ‘अन्जान’ इस शहर में तू, गुमशुदा हो गया,
हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,
सत्य से सराबोर ये गज़ल दिल को छूती है
ReplyDeleteare wah.....aap to bada khatarnaak likhte hain......aapki ye gazal mumbai k liye ekdum fit hai....
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