जेब से तो हम गरीब थे, पर ख्वाब बड़े अमीर थे।
दूरियां चाहे जितनी भी थीं, हम दिल के बेहद करीब थे।
जी लेते थे ज़िंदगी हर पल, वो पल कितने खुशनसीब थे।बाॅट लेते थे सुख दुख अपने, सडक पर बैठ इक कोने में।
और पी जाते थे सारे गम, भर कर एक चाय के दोने में।
मतलबी लोगो में फसे, हम अपने ही हबीब थे।
जी लेते थे ज़िंदगी हर पल, वो पल कितने खुशनसीब थे।
एक दूसरे के पूरक थे हम, इक दूजे की जरूरत थे।
छोटी छोटी जीत के महलो पर, अपनी ही एक हुकूमत थे।
धूर्तों की नगरी में देखो, हम अपने ही नजीब थे।
जी लेते थे ज़िंदगी हर पल,वो पल कितने खुशनसीब थे।
उनको कुछ मालूम नहीं था, हम पर जो भी हँसते थे।
पीठ पीछे कुछ भी कहते हो, पर सामने कहने से डरते थे।
एसे कायरों के बीच मे रह, हम अपने ही मुजीब थे।
जी लेते थे ज़िंदगी हर पल, वो पल कितने खुशनसीब थे।
हमे आज भी नहीं किसी से, न शिकवा न कोई गिला।
जीवन से जो चाहा हमने, उससे ज्यादा ही हमे मिला।
जी लेते हैं आज भी हर पल, उतनी ही खुशनसीबी से।
दूर भले हो आज मगर , पर दिल रखते है करीबी से।
बातें हो न हो दिनो तक, पर यादों का जाल बिछाते हैं।
ये वही पुराने दोस्त हैं जो, जो ता उम्र साथ निभाते हैं।
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