कलम उठाई कागज तक आया,
लिखना चाहा लिख ना पाया,
इतना बेबस कभी ना पाया,
कलम उठाई कागज तक आया,
चारों तरफ नज़र दौड़ायी,
बेचैनी और मायूसी पायी,
क्योंकि गम ने सबको घेरा,
छोड़ चुके सब रैन बसेरा,
मुझको यारों समझ ना आया,
कलम उठाई कागज तक आया,
लिखना चाहा लिख ना पाया,
कहीं अकाल कहीं हैं पानी,
कहीं जल रही कोई जवानी,
कहीं है झगड़ा कहीं फसाद,
इंसा क्या बन गया है आज,
मन में झाकां कुछ ना पाया,
कलम उठाई कागज तक आया,
लिखना चाहा लिख ना पाया,
सहमे सहमे खड़े हैं लोग,
इक दूजे से डरे हैं लोग,
बात करने से कतराते हैं,
खुद पर ही इतराते हैं,
देख ईर्ष्या की काली छाया,
कलम उठाई कागज तक आया,
लिखना चाहा लिख ना पाया,
यह सब छोड़ उपवन में आया,
दिल ने थोड़ा सुकून पाया,
फूलों की भीनी खुश्बू ने
मंद मंद शीतल हवा ने,
मुझको बस इतना बतलाया,
निराश न हो समय बदलेगा,
प्यार ही प्यार दिलों में रहेगा,
नफरत की कहीं जगह न होगी,
फिर न कोई मुश्किल होगी,
बस तू कलम उठा कागज तक आ,
और लिखता जा बस लिखता जा.....
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