आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Monday, December 27, 2010

बेबसी

कलम उठाई कागज तक आया,

लिखना चाहा लिख ना पाया,

इतना बेबस कभी ना पाया,

कलम उठाई कागज तक आया,

चारों तरफ नज़र दौड़ायी,

बेचैनी और मायूसी पायी,

क्योंकि गम ने सबको घेरा,

छोड़ चुके सब रैन बसेरा,

मुझको यारों समझ ना आया,

कलम उठाई कागज तक आया,

लिखना चाहा लिख ना पाया,

कहीं अकाल कहीं हैं पानी,

कहीं जल रही कोई जवानी,

कहीं है झगड़ा कहीं फसाद,

इंसा क्या बन गया है आज,

मन में झाकां कुछ ना पाया,

कलम उठाई कागज तक आया,

लिखना चाहा लिख ना पाया,

सहमे सहमे खड़े हैं लोग,

इक दूजे से डरे हैं लोग,

बात करने से कतराते हैं,

खुद पर ही इतराते हैं,

देख ईर्ष्या की काली छाया,

कलम उठाई कागज तक आया,

लिखना चाहा लिख ना पाया,

यह सब छोड़ उपवन में आया,

दिल ने थोड़ा सुकून पाया,

फूलों की भीनी खुश्बू ने

मंद मंद शीतल हवा ने,

मुझको बस इतना बतलाया,

निराश न हो समय बदलेगा,

प्यार ही प्यार दिलों में रहेगा,

नफरत की कहीं जगह न होगी,

फिर न कोई मुश्किल होगी,

बस तू कलम उठा कागज तक आ,

और लिखता जा बस लिखता जा.....

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