आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Sunday, February 17, 2019

गज़ल


एक सहारा ही तो चाहा है, किसी का घर नहीं
परिदों से हौसले ही तो मागें हैं, कोई उनके पर नहीं
अब बढ़ा तो पीछे मुड़ के न देखू़ँगा
मैने बस मजिंल चाही हैं, मील के पत्थर नहीं,
आँधियों अब ना आना कभी तुम मेरे आगे
तेरे कहर का मुझ पर, कोई असर नहीं
तू खुदा तो नहीं हैं जो मुझे झुका सके
और जो झुक जाऊं यारो, ऐसा वो मैं सर नहीं
मिटाना चाहे भी तो तू मुझे मिटा नहीं सकता
मैं इक चटान हूँ, कोई रेत का बवडंर नहीं
मेरी खामोशियों को मेरी खामियाँ ना समझ लेना
मैं इक तुफान हूँ, कोई शांत समंदर नहीं
सामने से करो वार गर जो हिम्मत हैं,
मैं इक दिलेर लशकरी हूँ, कोई कायर नहीं
वो मुस़लसल दबाता सा रहा है मुझको
कह दो जाके उसे कोई, मुझे अब किसी के बाप का डर नहीं

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