मत समझना की मैंने पी रखी हैं,
बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,
तुमने दिया है आज कुछ कहने का मौका,
इसलिए तस्वीर तेरी सीने से लगा रखी हैं,
दिल की बात कहने के अपने हैं कुछ उसूल,
बाकी बातें दिमाग की अब लगती हैं फिजूल,
फसां हुआ था मैं बस इसी कशमकश में,
कि दिल और दिमाग ने ये क्या लगा रखी हैं,
मत समझना की मैंने पी रखी हैं,
बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,
किस भूल की आपने हमें ऐसी दी सजा,
अचानक हुए गुम हमें पता भी ना चला,
थक गयी निगाहें तुम्हे जब हर जगह दूंढ के,
एहसास हुआ तब हमें क्या चीज़ गवां रखी हैं,
मत समझना की मैंने पी रखी हैं,
बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,
मुद्तों के बाद आज जब देखा हैं तुम्हें,
सुकून सा दिल को ‘अन्जान’ आया है हमें,
वही मासूमियत भरा चेहरा वही मुस्कुराहट है दिखी,
तो लगा खुदा ने मेरी चीज़ आज भी संभाल रखी हैं,
मत समझना की मैंने पी रखी हैं,
बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,
bahut sundar gazal hai aapki alok ji,hriday ke bhavon kee sundar abhivyakti.badhai.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
kamaal ka likha hai ji
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
वाह सुंदर ..
ReplyDeleteभावों और शब्दों का सुंदर संयोजन....
शालिनीजी, विद्याजी, मिस.शरद सिंहजी,ओजस्वीजी,एहसास जी और हबीब जी का सादर आभार.. इसी तरह उत्साहित करते रहिये..
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