आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Sunday, January 2, 2011

ग़ज़ल

कितनी बात छिपी हुई हैं, इस दिल की गहराई में,

तुम आओ तो बात करें हम, मिलकर इस तन्हाई में,

मौसम कितने बीत गए हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं,

तुमको कितने खत हैं लिखे, पर इक का भी जवाब नहीं,

अपना हाल कहें अब किससे, याद भरी पुरवाई में,

तुम आओ तो बात करें हम, मिलकर इस तन्हाई में,

दिन काटे अब कटते नहीं हैं, रातें डसती रहती हैं,

इक बैचेनी सी हैं मन में, जिंदगी बोझिल लगती हैं,

तू ही तू याद है मुझको, देखूं तुझे परछाई में,

तुम आओ तो बात करें हम, मिलकर इस तन्हाई में,

बंधन सारे तोड़ के तुम, आ जाओ बस इस पल में,

देखे थे जो ख़्वाब हमने, बदले उसे हकीकत में,

सारे गुनाह अब मेरे सिर पर, क्या रखा है जुदाई में,

तुम आओ तो बात करें हम, मिलकर इस तन्हाई में,

3 comments:

  1. भाव अभिव्यक्ति अच्छी है.
    रचना अच्छी है परन्तु आलोक जी मेरे विचार में इसे ग़ज़ल नहीं, गीत कहें तो अधिक बेहतर होगा .बाकि विशेषज्ञों की राय लें.

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  2. सधन्यवाद,अल्पना जी..
    जहाँ तक मेरा छोटा सा जो साहित्यिक ज्ञान है, गीत जब आप लिखते है तो हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है किन्तु जब ग़ज़ल लिखते हैं तो उसमे उर्दू ओर हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाता रहा है.. परन्तु आपकी बात को मद्देनज़र रखते हुए में अन्य विशेषज्ञों की राय ज़रूर लूँगा .. इसी तरह उत्साहवर्धन करती रहें..

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  3. आदरणीय अनजान जी
    आपको मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें ......आपकी पोस्ट निश्चित रूप से ग्राह्य है ..परन्तु आपको अल्पना जी के सुझाब पर गौर करना चाहिए ...आपका शुक्रिया

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