आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Wednesday, November 17, 2010

नन्ही कली

बागीचे में खिली खिली, इक नन्ही मासूम कली,

दूंढ रही हैं अपने अस्तित्व में, लाने वाले उस जनक को

जिसने अपने श्रम से सिंचित, उसे किया इतनी हरी भरी,

दूंढ रही है अब उसे, ये नन्ही मासूम कली.....

पूछा उसने उन बड़े बड़े फूलों से,जो बागीचे में महक रहे थे,

पूछा उसने उन शूलों से,जो अब चुभने के लिए खड़े थे,

पूछा उसने उन भवरों से,जो उस पर मंडरा रहे थे,

पर निरुत्तर से खड़े सभी,इक दूजे को ताक रहे थे,

उनके उतरे चेहरे देख, हो उठी मायूस कली,

दूंढ रही उस जनक को, जिसने किया उसे हरी भरी,

कुम्हलाई मुरझाई सी, झुकी झुकी अलसाई सी,

देखा जब उसने धरा पर, धरती फिर अकुलाई सी,

मन की व्यथा कली की जान,धरती बोली सुन नन्ही जान,

तू मेरे ही गर्भ से निकली, फिर क्यों हो मायूस हैरान,

जिसने तुझको बोया मुझमें, जिसने किया तेरा ये श्रिंगार,

वो तो केवल ईश्वर है, जिसने लिया बस मानवीय अवतार,

खो जायेगी व्यर्थ में यूँ ही, जीवन एक समंदर है,

फिर क्यों पगली दूंढ रही उसे, जो तेरे ही अंदर है,

तू जन्मी है इस धरा पर, बन कर फूल महकने को,

और अपनी मादक महक से, सम्पूर्ण धरा वश करने को,

बात समझ में आते ही, उठ खड़ी हुई निडर-सबल कली,

दिखी नई चमक सी उसमे, खुल के खिली वो नन्ही कली...

4 comments:

  1. bahut pyari manmohak kali-arthart aapki abhivyakti...

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  2. बहुत अच्छा अलोक जी ..मर्मस्पर्शी रचना है

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