आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Monday, June 23, 2014

परिवार

चार दीवारों से नहीं कोई, परिवार बनता हैं
जब रिश्ते इसमें बसते हैं, तब परिवार बनता हैं
हम भूल जातें हैं और, यह अंतर नहीं दिखता हैं
भाई बहन लड़ते हैं, फिर भी उनमें प्यार दिखता हैं
जब सारा दिन थक कर, माँ चूर हो जाती हैं
परिवार की खुशी के लिए, अपनी खुशी से दूर हो जाती हैं
त्याग करुणा स्नेह का जब, ममत्व बरसता हैं
तब रिश्ते अपने लगते हैं, और परिवार बनता हैं
उर्जा का स्रोत पिता, सबका पालन पोषण करता हैं
परिवार की एकता के लिए, कड़ा अनुशासन रखता हैं
कठोर दिल का हैं, पर बच्चों की तरह हँसता हैं

भाई बहन माँ बाप जहाँ हो, वहीँ परिवार बसता हैं 

2 comments:

  1. सच्ची और आत्मिक पंक्तियाँ...

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  2. बहुत ही सुंदर रचना है

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