आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, April 17, 2012

दोहे-दर्शन (भाग-२)

इस साल की यह पहली प्रस्तुति “दोहे-दर्शन” (भाग-२) खास आपके जानिब..........

किया जतन से बाप ने, थोड़ा सामान सहेज,

फिर भी बलि चढ़ गयी, जब मिला न उन्हें दहेज,

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जिसने जब ये जान लिया, अपने अंदर का भेद,

कि पार नहीं हो सकता कोई, जब हो नाव में छेद,

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दोनों दीन के दुःख हरे हैं, दोनों की शान अज़ीम,

मस्जिद में रहें राम, या फिर मंदिर में रहें रहीम,

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दुःख पड़े तो सब जपे, सुख में करें ना याद,

इसी बात को सोचकर, है अन्दर मूरत उदास,

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मैंने कह दी सब बातें, अपनी तरफ से साफ़

तुम समझो या ना समझो, अल्लाह करे माफ,

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सहती रहती जुल्म अपने पर, उसमे भी तो है जाँ,

है वो भी किसी की बेटी- बहन, या फिर किसी की माँ,

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पाँव नहीं पसारेगा, कैसा भी हो भ्रष्टाचार,

त्याग दे जब लालच को, और रखें शुद्ध विचार,

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जब मेंढक टर्राने लगे, और कौवे करें कांव कांव,

तब बगुले के भेष में, नेता घुसते देखो गाँव गाँव,

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वो बैठा परदेश में, सब कुछ भूले-भाल,

बूढी अंखियाँ तक रही, कब आओगे लाल,

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पाप पुण्य के फेर में, फसें रहें जीवन भर,

छोटी छोटी खुशियों को, कर गए इधर-उधर,

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सूखी धरती-प्यासी आँखें, भूखे पेट-कई सवाल,

दिल्ली तो बहरी भई, अब किससे कहैं वो हाल,

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लड़ने से कुछ हासिल नहीं, क्या तेरा क्या मेरा,

जिस दिन खुले आँख जब, तब समझो भया सवेरा,

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