आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Friday, August 19, 2011

ग़ज़ल

मत समझना की मैंने पी रखी हैं,

बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,

तुमने दिया है आज कुछ कहने का मौका,

इसलिए तस्वीर तेरी सीने से लगा रखी हैं,

दिल की बात कहने के अपने हैं कुछ उसूल,

बाकी बातें दिमाग की अब लगती हैं फिजूल,

फसां हुआ था मैं बस इसी कशमकश में,

कि दिल और दिमाग ने ये क्या लगा रखी हैं,

मत समझना की मैंने पी रखी हैं,

बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,

किस भूल की आपने हमें ऐसी दी सजा,

अचानक हुए गुम हमें पता भी ना चला,

थक गयी निगाहें तुम्हे जब हर जगह दूंढ के,

एहसास हुआ तब हमें क्या चीज़ गवां रखी हैं,

मत समझना की मैंने पी रखी हैं,

बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,

मुद्तों के बाद आज जब देखा हैं तुम्हें,

सुकून सा दिल को ‘अन्जान’ आया है हमें,

वही मासूमियत भरा चेहरा वही मुस्कुराहट है दिखी,

तो लगा खुदा ने मेरी चीज़ आज भी संभाल रखी हैं,

मत समझना की मैंने पी रखी हैं,

बहुत दिनों से ये जुबाँ सी रखी हैं,