आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Saturday, January 1, 2011

दोहे- दर्शन

आज कुछ नया लिखने का मन हुआ तो सोचा कुछ कम शब्दों में अपनी बात कही जाए और फिर मुझे दोहे याद आये.. बातें सब पुरानी ही हैं पर उन्हें नए कलेवर में ढालने का प्रयास किया है..नव वर्ष की बधाई के साथ इस साल की यह पहली प्रस्तुति खास आपके जानिब.......


सीधी सादी बात को, क्यों देते हो तूल,

अहं छोड़ के मान लो, हुयी जो कोई भूल,

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तुझमें है इच्छा शक्ति, फिर क्यों तू कुछ मांग,

छूना है आकाश को, तो पहले मार छलांग,

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सब कुछ अपना वार के, दे देती है जाँ,

जिस स्त्री में है ये गुण, वो कहलाये माँ,

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जितनी सेवा हो सके, उससे ज्यादा कर,

ये रत्न अमूल्य हैं, बुजुर्गों से है घर,

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वो बैठा किनारे पर, लेकर बस इक चाह,

आँखों में दिखती है, दो रोटी की आह,

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मंदिर बने मस्जिद बने, आज भी है ये शोर,

सीख ना ली परिंदों से, जो बैठते दोनों ओर,

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निकल पड़ा सवेरे ही, हो कर थकने चूर,

बच्चे खुश हो जायेंगे, जब लौटेगा मजदूर,

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भूखे को रोटी नहीं, महंगाई की मार,

कब तक सोती रहेगी, दिल्ली की सरकार,

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सब कुछ तो है बिक चुका, सिर्फ बची है जान,

अन्न कहाँ से पैदा करे, ऋण से दबा किसान,

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2 comments:

  1. सभी दोहे दर्शन बेहद सुन्दर लगे..
    खास यह लगा ...
    ''सब कुछ अपना वार के. दे देती है माँ !......''

    अति सुन्दर!
    नववर्ष 2011 आपके व आपके परिवार
    के लिए ढेरों प्रसन्नताएं लाए ,शुभकामनाएँ.

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  2. धन्यवाद अल्पनाजी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए..
    आपको व आपके समस्त परिवार को भी नव वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनायें..

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