आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Sunday, December 26, 2010

ग़ज़ल का एक नया अंदाज़

ग़ालिब ने ठीक ही कहा है ' ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है' कुछ इसी तरह के भाव को मैंने अपनी इस ग़ज़ल में एक नए अंदाज़ से पेश करने की कोशिश की है....

मैं सीरीयस था, वो funny थी

ना जाने किस बात पर वो तनी थी,

टूटा जब दिल तब समझ में आया,

मैं पीतल का छल्ला, वो हीरे की गनी थी,

मैं सीरीयस था, वो funny थी.......

मिले थे बन ने, एक दूजे का हमदम,

पर क्या मालूम था की निकल जायेगा दम,

कुछ दूर चल कर दिखा दिया उन्होंने ठेंगा,

हाय! हाय! वो जालिम, कितनी ही cunning थी,

मैं सीरीयस था, वो funny थी.......

दिल दिल ना हुआ आनाथालय हुआ,

बस जिसको देखा उसी का कायल हुआ,

कमीना था दिल बस निकल पड़ा half hearted,

पर वो मुस्कुराते हुए, पत्थर की तरह खड़ी थी,

मैं सीरीयस था, वो funny थी........

चाहा था अपने सपनों के चावल पकाना,

और उनकी पकी दाल से इसे मिलाना,

पर हुई cooking waste और समझ में आया,

कि उनकी दाल तो कहीं और ही गली थी,

मैं सीरीयस था, वो funny थी........

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