आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, August 31, 2010

गीत

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में,

खुश्बू सी तुम महक रहीं हो इन धडकन में,

सावन की घटा के जैसे केश तुम्हारे,

पंखुड़ियों के जैसे तेरे अधर प्यारे,

योंवन छलक रहा है तेरे इन नयन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में..

चांदनी शरमाती है देख तुम्हारी काया,

धूप में तेरा साथ मुझे लगे शीतल छाया,

तुम जैसा न फूल दूसरा कोई चमन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में...

दिल पर रख कर हाथ मैं कहता हूँ तुमसे,

मर कर भी साथ निभाऊंगा कसम से,

इक बार बस आ जाओ तुम इस जीवन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में......

1 comment:

  1. अच्छा लिखा है..आपके के लेखन में सादगी के साथ साथ भावना है..शब्द दिल तक पहुँचते हैं

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