आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, August 31, 2010

गज़ल

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,

कोशिशें करी कई बार कि मिल सकूँ तुमसे,

कदम तुमको दूंढ के वापस लौंट आते है,

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,

मालूम है हमें कि आप हमसे हैं नाराज़,

कहिये तो आसमां को जमीं पे ले आते हैं,

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,

जब कभी होता हूँ तन्हा तो बस तुमको सोचता हूँ,

और ये भी सोचता हूँ कि क्या वो भी सोच पाते हैं,

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,

अपनी तो आदत है दिल साफ़ रखने की,

गर तुम कहो तो ये हुनर तुमको भी सिखाते हैं,

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं,

गलतियां इंसानों से ही होती है ‘अन्जान’,

हमें याद आया तो अब हम पछताते हैं,

रूठों को चलो आज हम मनाते हैं,

कुछ तुम कहो कुछ हम अपनी सुनाते हैं....

गीत

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में,

खुश्बू सी तुम महक रहीं हो इन धडकन में,

सावन की घटा के जैसे केश तुम्हारे,

पंखुड़ियों के जैसे तेरे अधर प्यारे,

योंवन छलक रहा है तेरे इन नयन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में..

चांदनी शरमाती है देख तुम्हारी काया,

धूप में तेरा साथ मुझे लगे शीतल छाया,

तुम जैसा न फूल दूसरा कोई चमन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में...

दिल पर रख कर हाथ मैं कहता हूँ तुमसे,

मर कर भी साथ निभाऊंगा कसम से,

इक बार बस आ जाओ तुम इस जीवन में,

मैंने तुमको देखा है इस अंतर्मन में......

ग़ज़ल

इस शहर को न जाने, क्या हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

जो पहचानते थे वो, अंजान हो गये

जो थे समझदार, वो बेईमान हो गये,

आज पैसा ही लोगों का, खुदा हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

अच्छे खासे रिश्ते, बदनाम हो गये,

राम-मोहम्मद-नानक, गुमनाम हो गये,

प्यार लोगों के दिलों से धुआं हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

हम क्या थे पहले दोस्तों, आज क्या हो गये,

नफरत की इस अन्धी दौड़ में,खुद शामिल हो गये,

देख ‘अन्जान’ इस शहर में तू, गुमशुदा हो गया,

हर आदमी दूसरे से, जुदा हो गया,

Wednesday, August 25, 2010

ग़ज़ल

जिन्दंगी जब भी मुझे उनके करीब लाती हैं,

हर इक शाम मुझे और हसीं नज़र आती हैं,

हालात् अपने पहले तो ऐसे न थे कभी,

हमें प्यार आता है वो प्यार से घबराती हैं,

जिन्दंगी जब भी मुझे उनके करीब लाती हैं,

हर इक शाम मुझे और हसीं नज़र आती हैं,

दिल तो पहले भी धड़कता था मेरा उनके लिये

अब तो सांसों में भी बस उनकी महक आती हैं,

जिन्दंगी जब भी मुझे उनके करीब लाती हैं,

हर इक शाम मुझे और हसीं नज़र आती हैं,

दिल चाह कर भी उनसे कुछ कह न पाये,

उनकी हालत भी मेरे जैसी ही नज़र आती हैं,

जिन्दंगी जब भी मुझे उनके करीब लाती हैं,

हर इक शाम मुझे और हसीं नज़र आती हैं,

अनोखी परीक्षा

एक युवक हर जगह से, हाताश-निराश,

पहुंचा अपने गुरूजी के पास,

बोला- गुरूजी आपसे मैंने व्यर्थ ही शिक्षा पायी,

आपकी बताई शिक्षा कहीं काम न आयी,

अब कोई नया सबक सिखाओं,

वरना टूयसंस् के सारे रुपये वापस लाओं,

गुरूजी बोले- चिन्ता मत कर,

कुछ नहीं हुआ तो मजनुगिरी कर,

आजकल इसमे बड़ा फायदा है,

क्योंकि इसका भी एक कायदा है,

रोजाना एक अमीर लड़की को छेडो,

उसके पीछे हाथ धो के पडो,

फंस गई तो बड़ा मज़ा आएगा,

दोनों समय का खाना पीना मुफ्त में पायेगा,

युवक बोला- परन्तु गुरूजी अगर नहीं फंसी तो क्या होगा,

गुरूजी बोले- टांग तू अपनी पहले लगायेगा,

अरे गधे! नहीं पटी तो भूखें सोयेगा,

तेरी इसी आदत से तू आज तक कुछ नहीं कर पाया,

फ़ालतू का ब्लेम मुझ पर लगाया,

और हाँ, एक बात का खास ख़याल रखना,

पकडे जाओ तो उसे तुरंत बहन बनाना,

वरना बच्चू, इतना मारे जाओगे,

की इस पेशे से तो उखडोंगे ही,

दुनिया से भी चले जाओगे,

युवक को बात आ गई समझ में,

पहुंचा वो सीधे रस्ते पे,

और एक लड़की को छेड़ने में कामयाब हो गया,

धीरे धीरे इस शिक्षा में पारंगत हो गया,

पर एक दिन गुरूजी ने,

उस युवक की लेनी चाही परीक्षा,

गुरूजी बोले- बता तेरी क्या है इच्छा,

युवक बोला- गुरूजी मैं सदैव तत्पर हूँ,

तथा अपनी पूर्ण तैयारी पर हूँ,

गुरूजी बोले- तो जा आगे बढ़ और उस लड़की को छेड के दिखा,

और मेरे द्वारा सिखायी गई शिक्षा में सफल हो जा,

युवक ने जाती हुई उस लड़की छेड दिया,

लड़की ने उसका हाथ पकड़ा, और दों-तीन जड़ दिया,

लड़की के करारे झापड़ से,

युवक का सिर भन्ना गया,

वो तो पूरे सकते में आ गया,

गाल को सहलाते हुए वो बोला-

बहन जी माफ़ किजियेंगा, मैंने छेडने के उदेश्य से,

आपको नहीं छेडा था ,

मैं तो केवल अपनी परीक्षा दे रहा था,

मुझसे मेरे गुरूजी ने कहा था कि,

अगर मजनुगिरी में, तुम कभी भी पकडे जाओ,

तब तुम ये नुख्सा आजमाओ,

जिस लड़की को छेडो उसे तुरंत अपनी बहन बनाओ,

अत: बहन जी मैं इस क्षेत्र का कच्चा खिलाड़ी हूँ,

बहुत ही अनाड़ी हूँ,

परन्तु मेरे गुरूजी आज भी, इस क्षेत्र में जमे हुए हैं,

और उधर देखिये, आगे जा रहीं महिला को छेड़ने में लगे हुए हैं.