आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Monday, July 5, 2010

अभिलाषा

मेरे जीवन के वनस्थल में, बस केवल इक सिंहरन है,

जीवन में जो कभी न आई, न आई कोई किरण है,

इक किरण के न आने से, जीवन की बगिया है सूनी,

सींचा जिसे मैंने तन मन से, बगिया- बगिया न बनी,

तो ऐसी ही इस बगिया में, न कोई फूल न कोई भ्रमर है,

मेरे जीवन के वनस्थल में, बस केवल इक सिंहरन है,

एक किरण के न आने से,जीवन का पथ हुआ वीरान,

बिखरे पड़े हज़ारों पत्थर,लगता जैसे कोई शमशान,

तो ऐसे ही इस पथ पर, केवल उजड़ा हुआ चमन है,

मेरे जीवन के वनस्थल में, बस केवल इक सिंहरन है,

मेरे जीवन के वनस्थल में, भगवन एक किरण ला देना,

या फिर मेरी वनस्थली को, मरुस्थली बना देना,

पथ पर छाए हुए वीराने को, भगवन तुम हटाना,

और उजड़े हुए चमन को तुम, महका चमन बनाना,

जीवन की बगिया में भगवन, तुम ऐसी एक किरण दो,

फूल खिले सहस्त्रों उसमे, मंडरा रहे भ्रमर हों,

तो जीवन में इस ‘’अन्जान’’ आलोक का, संचार तुम कर दो,

और मेरी इस अभिलाषा को हे! भगवन पूर्ण तुम कर दो.

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