आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Tuesday, June 15, 2010

बेटियाँ (गजल)

बंद हैं क्यों खिड़कियाँ-दरवाजें, इस घर में

बेटियां जवान हुई आज, इस घर में

बाप कमाता रहा पिसता रहा, बस उम्र भर

फिर भी दहेज़ जुटा न सका, इस घर में

रूह कापं गयी उसकी जब सुना, की वो जली

माँ ने फिर आँसू बहाए रात तलक, इस घर में

कुछ शर्तों के साथ जब तय हुआ,रिश्ता ‘’अन्जान’’

तब बेटियाँ न रही, आज इस घर में

3 comments:

  1. हमारी बेटियों की त्रासदी को बखूबी दर्शाया है आपने..अलोक जी
    बधाई

    हिंदी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है..मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं..अपनी कलम को अब रुकने न दीजियेगा

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  2. good going alok ...all the best

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