आपके जानिब.....

आपके जानिब...आप सभी को अपनी रचनाओं के माध्यम से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास हैं, जहाँ हर एक रचना में आप अपने आपको जुड़ा हुआ पायेंगे.. गीत ,गज़ल, व्यंग, हास्य आदि से जीवन के उन सभी पहलुओं को छुने की एक कोशिश हैं जो हम-आप कहीं पीछे छोड़ आयें हैं और कारण केवल एक हैं ---व्यस्तता

ताजगी, गहराई, विविधता, भावनाओं की इमानदारी और जिंदगी में नए भावों की तलाश हैं आपके जानिब..

Saturday, June 26, 2010

समस्या निवारण (हास्य कविता)

कालेज के दिनों में लिखी गई मेरी सर्वप्रथम हास्य कविता. सही कहा है किसी ने की रुलाना बहुत आसान हैं किन्तु किसी को हँसाना उतना ही कठिन.. मेरा भी इस राह में ये पहला प्रयास था....


मेरे एक मित्र के यहाँ शादी पड़ी,

मुझे लगा चलो एक दावत तो मिली,

सोचा,लड़की की हुई तो पाचास-सौ में काम चल जायेगा,

लड़के की हुई तो ये भी वापस मिल जायेगा.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक ने मेरे विचारों को तोडा,

में झुंझला कर बोला- साहब घर पर नहीं हैं

बाहर से आवाज आई- दोस्तों से ही झूठ बोलते हो,

दरवाज़ा खोलने से डरते हो,

अरे यार में वही तुम्हारा दोस्त हूँ

जिसके यहाँ शादी पड़ी हैं

पर मेरे सामने एक समस्या खड़ी हैं,

इसका निवारण तो मैं तुमसे ही करवाऊंगा,

दोस्तों के पास न आऊं तो क्या दुश्मनों के पास जाऊँगा,

मैंने मन ही मन सोचा- आज तो बुरे फसें हैं,

ये अपनी समस्या का निवारण मुझसे ही करवाएगा,

लेन-देन का मामला हुआ तो चार-पांच हज़ार ले कर ही जायेगा,

तभी बाहर से फिर आवाज़ आई- अरे दरवाजा तो खोल,

कुछ तो बोल,

खडें-खडें मेरा दम निकला जा रहा हैं,

मैं बोला- पाजामा तो मिल गया लेकिन,

नाडा नहीं मिल रहा हैं,

जैसे तैसे मैंने दरवाज़ा खोला,

वो अंदर आ कर मुझसे लिपट कर बोला,

अरे यार! तू ही तो मेरा सच्चा दोस्त हैं,

बुरे वक्त में काम आता हैं,

तू ही तो गरीबों का दाता हैं,

मैने कहा- ठीक हैं ठीक हैं लिपट मत, ज़रा दूर हटके बात कर,

वरना पाजामा खुल जायेगा,

और जो नहीं होना चाहिए, वो हो जायेगा,

मैंने पाजामा को कस के पकड़ते हुए पूछा-

ऐसी कौन सी समस्या हैं जो तू नहीं सुलझा पायेगा,

और अपनी समस्या मुझसे सुलझवायेगा,

अगर समस्या है हलवाई की तो घबरा मत,

मेरे पडोसी का साला, बनाता है अच्छा खाना,

ऐसा खाना बनाएगा की बाराती उंगलियाँ चाट्तें रह जायेंगें

चम्मच कटोरी प्लेट सब छोड कर भाग जायेंगें,

चल ये समस्या तो तेरी सुलझ गयी,

और खाने की भी बचत हो गयी,

इतना सुनते ही मेरे दोस्त ने अपना मुंह खोला,

मैं बीच मे ही बोला-

की अगर समस्या हैं आभूषणों की,

तो इसमे कौन सी बड़ी बात हैं

किशोरीलाल ज्वेलर्स की दुकान अपने साथ हैं,

उसकी दुकान पर शादी का कार्ड लेके जायेंगें

और महगें से महंगे आभूषण तेरे क्रेडिट कार्ड पर ले आयेंगे,

इतना कहते ही मेरे मुहँ पर अपना हाथ रखते हुए वो बोला,

अरे यार! तू अपनी ही कहे जा रहा हैं

मेरे दिल का हाल तो जान ले,

अभी तो समस्या बताई ही नहीं वो तो सुनले,

मैनें उसका हाथ हटाते हुए पूछा- अबे गधे!

पहले क्यों नहीं बोल पाया,

फालतू में इतना बक बक करवाया,

अच्छा पहले ये बताओं की शादी किस की-किसके साथ हैं,

वो बोला- यही तो असली बात हैं,

जो तुम्हारी बीवी के हाथ हैं,

मैनें कहा- मेरी बीवी का इसमे क्या हाथ हैं,

वो मुस्कुराकर बोला- अरे यार शादी तो उसी के साथ हैं,

मेरा तो सिर चकराया,

और मन ही मन फ़रमाया

हे भगवान ये क्या हो गया

गरीबों का दाता आज खुद ही फँस गया,

अचानक खुल गयी मेरी आँखें

देखा सुबह हो चुकी थी और मैं ज़मीन चाट रहा था,

कभी अपने आपको तो कभी पाजामे के नाडे को निहार रहा था.

Wednesday, June 23, 2010

लक्ष्य


अपनी इच्छाओं का जो गला दबाते हैं,

वे लोग अपनी जिंदगी में हार जाते हैं,

कोसते रहतें हैं सदा अपनी तकदीर को,

कष्ट पहुँचाते हैं वे अपने शरीर को,

जो तकदीर के सहारे बैठ जाते हैं,

वे लोग अपनी जिंदगी में हार जाते हैं,

ऐसे लोगों का कोई लक्ष्य नहीं होता,

ऐसे लोगों का कोई पक्ष भी नहीं लेता,

जो बिना लक्ष्य के पथ पे चलते जाते हैं,

वे लोग अपनी जिंदगी में हार जाते हैं,

मत दबाओं तुम अपनी इच्छाओं का गला,

तकदीर को न कोसों और लक्ष्य को ज़िला,

फिर देखों कैसे तीर निशाने पर बैठ जाते हैं,

जो हारते थे कभी जिंदगी से, वे जीत जाते हैं.

Monday, June 21, 2010

नेताजी की आरती


जय नेता जय नेता जय जय नेता,

घोटालों का भोग चढ़ें और चढें पैसा,

जय नेता जय नेता जय जय नेता,

एक मन्त्र महामंत्र लूटे और खसोट,

जनता का धन लूटे उनका खून चूसे,

इतने पर भी देखो इनका पेट नहीं भरता,

जय नेता जय नेता जय जय नेता,

दिखने में लगते भोले अंदर से काले,

कितने ही घोटाले देखो चढ़ें इनके हवाले,

फिर भी कहते हैं अपने को, गाँधीजी का बेटा,

जय नेता जय नेता जय जय नेता,

अपना तो काम इन्हें,निकलवाना खूब आता,

बातों से बात बने, वरना डंडों से है इनका नाता,

गुंडागर्दी है देखो,केवल इनका पेशा,

जय नेता जय नेता जय जय नेता,

नेता की बातें तो, केवल नेता ही जानें

नौकरी न मिले तो, नेता ही बने,

क्योंकि नेता के आगे, कोई नहीं टिकता,

जय नेता जय नेता जय जय नेता.

आदमी


प्यार को भूल चुका आज आदमी,

भूल चुका सारे व्यवहार आदमी,

नफ़रत की अन्धी ‘’अन्जान’’ दौड़ में देखो,

हो गया हैं शामिल आज आदमी,

भूल गया रिश्तों को आज आदमी,

भूल गया सम्बन्धों को आज आदमी,

अपने ही रिश्तों पर देखो रखता बुरी नज़र

कितना बदल गया हैं आज आदमी,

घमण्ड से भर गया हैं आज आदमी,

पाखण्ड का पकड़ा साथ देखो आज आदमी,

घमण्ड और पाखण्ड के नशे में हैं चूर,

भूल गया जीवन का ही अर्थ आदमी,

धर्म के नाम पर चिल्ला रहा आज आदमी,

आपस में देव्ष रख रहा आज आदमी,

मरने से कभी देखो डरता नहीं मगर,

मुफ्त में अपनी जान गवां रहा आदमी,

वक्त है संभल जा तू आज आदमी,

जीवन के मूल्यों को पहचान आदमी,

जो कुछ हुआ अभी तलक वो भूल जा सभी,

अपने को पहले एक बेहतर इंसा बना आदमी.

Sunday, June 20, 2010

ग़लतफ़हमी

दिल्ली की एक बस में हुई घटना से प्रेरित,वैसे तो ऐसी घटनाओं से प्रेरणा नहीं मिलती हैं केवल मन में रोष उत्पन होता हैं किन्तु शायद पहली बार इस वाकये को देखकर सभी यात्री हँस पड़े थे और मैंने उसे एक कविता का हास्य कविता का रूप दे दिया...

इक रोज कर रहा था, मैं बस में सफ़र,
अपनी ही धुन में था, न कोई थी खबर,
पर इस बेखबर ‘’अन्जान’’ को, कोई ताड़ रहा था,
शायद वो चुपके चुपके मुझे, निहार रहा था,
दिया जो मैंने ध्यान तो, बात समझ में आई,
आगे की सीट पर बैठी, इक हसीना नज़र आई,
जो देख देख कर मुझे, मुस्कुरा रहीं थी,
तिरछी निगाहों के तीर, मुझ पर चला रहीं थी,
पल भर में मैं भी उसकी ओर,खिंचता चला गया,
मगर उसके एक ही थप्पड़ ने, मुझे होश में ला दिया,
थोडा संभल के बोला मैं, बता क्या मेरी हैं खता,
किस बात की आपने दी मुझे, इतनी बड़ी सजा,
कसूर तो है आपका, जो मुझे देख रहीं थीं,
तिरछी निगाहों के तीर, मुझपे फेंक रहीं थीं,
अरे! अब तो इस रहस्य से, जरा पर्दा तो हटा,
वो बोली बड़े प्यार से भेंगी हूँ मैं, क्या तुझे नहीं पता,
मैनें कहा मोहतरमा, मैं तो कुछ और ही समझ रहा था,
माफ़ कीजेयेगा बहनजी, मैं बड़ी ग़लतफ़हमी मे था.

आँखे

कितनी ही सारी बातें, बताती हैं यें आँखे,

कितने ही सारे राज़, छुपाती हैं यें आँखे,

जो कह न पायें आप अगर, अपने दिल की बात,

उस बात को बड़े प्यार से, बताती हैं यें आँखे,

खुद नाचती हैं सबको, नचाती हैं यें आँखें,

हाय! कितने सितम देखिये, ढाती हैं ये आँखे,

अरे पूछिये उनसे जो, करतें हैं इश्क यारों,

उनके हाले दिल को बयाँ, करती हैं यें आँखे,

हर इक के दिल का हाल, जानती हैं यें आँखे,

हर इक के गम व खुशी को, पहचानती हैं यें आँखें,

खुशी हो तो दिखाई देती है, इनमें रौनक,

गम हो तो आँसू, बरसाती हैं यें आँखें,

वक्त आने पर खामोश सी, हो जाती हैं यें आँखें,

मासूम सी लगती हैं मौत के, आगोश में यें आँखे,

पर क्या करें बोलने से, बाज़ नहीं आती ‘’अन्जान’’,

मर कर भी न जाने, क्या कह जाती हैं यें आँखें.

Tuesday, June 15, 2010

बेटियाँ (गजल)

बंद हैं क्यों खिड़कियाँ-दरवाजें, इस घर में

बेटियां जवान हुई आज, इस घर में

बाप कमाता रहा पिसता रहा, बस उम्र भर

फिर भी दहेज़ जुटा न सका, इस घर में

रूह कापं गयी उसकी जब सुना, की वो जली

माँ ने फिर आँसू बहाए रात तलक, इस घर में

कुछ शर्तों के साथ जब तय हुआ,रिश्ता ‘’अन्जान’’

तब बेटियाँ न रही, आज इस घर में